राजद का प्लेटफॉर्म और नीतीश कुमार!
यह बात तो नीतीश कुमार को भी पता है कि राष्ट्रीय जनता दल आगे की राजनीति में बतौर मुख्यमंत्री कोई वैकेंसी खाली नहीं है। जिस तरह से नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव को अगला सीएम बनाने की सार्वजनिक घोषणा घोषणा की और फिर एनडीए के साथ गलबहिया कर ली, उसके बाद से नीतीश कुमार की विश्वसनीय लालू प्रसाद की नजर में कम हो गई। थोड़ी बहुत जो कसर बची थी वह इंडिया गठबंधन को बीच मझधार ने छोड़ने के कारण वह भी चली गई।
ऐसे में राजद की तरफ नीतीश कुमार अगर मुड़ भी जाते हैं सीएम की कुर्सी तो नहीं ही मिलेंगी। लेकिन उनका चेहरा एक बार फिर अविश्वसनीय हो जायेगा। ऐसा इसलिए कि काफी महत्वाकांक्षी रहे लालू प्रसाद आगामी विधान सभा चुनाव के लिए तेजस्वी यादव को आईएनडीआईए का चेहरा बनाकर सत्ता पाने की हर संभव कोशिश करेंगे। ऐसे भी आरजेडी के वरीय नेता तेजस्वी यादव को अगला मुख्यमंत्री बनाने के लिए पुरजोर मेहनत कर रहे हैं। ऐसे में नीतीश कुमार क्यों अपनी मिट्टी पलीद करने महागठबंधन में क्यों जाएंगे? ऐसे में निश्चित से अनिश्चित की ओर नीतीश कुमार क्यों जाएंगे?
पलटू राम का दाग और गहरा हो जाएगा?
नीतीश कुमार भी यह जानते हैं कि अगर 2025 के चुनाव में वह पलटी मारेंगे तो उन्हें सिर्फ पलटू राम की उपाधि मिल सकती है और कुछ नहीं। साथ ही इसके जंगल राज वाले राजद के गठबंधन के साथ तीसरी बार पाली खेलने पर राजनीतिक जगत में नीतीश कुमार की शुचिता वाली राजनीत एक बहस का मुद्दा बन चुका है।
भाजपा और नीतीश
राजनीत में गिव एंड टेक की नीति भाजपा और जदयू के बीच ही फलीभूत होती है। नीतीश कुमार अगर एनडीए की राजनीति में सीएम का पद बड़ी ही आसानी से पा लेते हैं तो नीतीश कुमार के कंधे पर सवार हो कर भाजपा बिहार में अपनी जड़े भी गहरी कर रही है।
अगर चार विधान सभा उप चुनाव के परिणाम का आंकलन करें तो जदयू के कंधे पर सवार भाजपा ने दो विधान सभा सीटों पर जीत हासिल की। इतना भर ही नहीं, बिहार विधान सभा चुनाव 2020 में विधायकों की संख्या बल को आज देखें तो भाजपा नीतीश कुमार के कंधे चढ़कर सबसे बड़ी पार्टी तो बन ही गई। 2015 के विधान सभा चुनाव में भाजपा जब जदयू से अलग हुई तो उनके विधायकों की संख्या 53 रह गई। राजद के 80 और जदयू के 71 उम्मीदवार जीत कर सदन में पहुंचे।
नीतीश कुमार का भविष्य भी भाजपा में
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राजनीत को अपग्रेड करने की बात करें या विशिष्ट सम्मान की ही तो वह भाजपा के साथ ही रह कर संभव है। ऐसा इसलिए कि अभी केंद्र में भाजपा नीत सरकार पांच साल के लिए है। भविष्य में कभी राष्ट्रपति या उप राष्ट्रपति का चुनाव होगा तो संभव है कि नीतीश कुमार को एनडीए अपना उम्मीदवार बनाकर भाजपा के लिए बिहार में रास्ता बना सकती है।
भारत रत्न देने की बात जो जोर शोर से उठ रही है वह भी अगर कोई पूरा कर सकती है तो वह भाजपा ही है। केंद्र में भाजपा की सरकार है। अभी पांच साल का टर्म है। कभी भी नीतीश को भारत रत्न देने की घोषणा कर नीतीश कुमार सक्रिय राजनीत को अलविदा कह सकते हैं।
भारत रत्न देने की गंभीरता इसी से समझा जा सकता है कि केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह, केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह और जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा कर रहे हैं।
बीजेपी की वाह वाही और नीतीश
इन दिनों नीतीश कुमार की नजरों में भाजपा कुछ इस तरह से अपना विश्वास बना ली है। याद करें, हाल ही में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में दिल्ली के एक कार्यक्रम में नीतीश कुमार ने कहा था कि हमारे संबंध 1990 के दशक से हैं। बिहार में ही जितने भी अच्छे कार्य हुए हैं, वह हमारा (एनडीए) का ही किया हुआ है।
हमसे पहले जो सत्ता में थे, उन्होंने कुछ नहीं किया। दो बार उनके साथ जाना मेरी गलती थी। लेकिन, अब मैं वैसी गलती नहीं दोहराना चाहता। मैं यही रहूंगा (एनडीए)।’ उन्होंने यह भी कहा कि अब ‘हमेशा के लिए’ बीजेपी के साथ रहूंगा।